जीवन में हर किसी को असफ़लता का सामना करना पड़ता हैं लेकिन, असफ़ल होने के बाद भी जो अपना प्रयास जारी रखता हैं वही असली सफल इन्सान बनता हैं, परन्तु सफलता मिलने पर अपनी जड़ो को कभी ना भूलो। एवं हमेशा ही स्वयं को सही रूप में समझने का प्रयत्न करते रहो, स्वयं का समुचित मूल्याकन करो और उसके बाद स्वयं को उसके अनुसार बदलने का प्रयास करो। तथा अपना रास्ता खुद चुनो और आगे बढ़ो, डरो नहीं, थको नहीं, बढ़ते रहो, पथप्रदर्शक बनो, लोग आएँगे, समूह बनेगा, उनको सही राह, सही सुझाव दो और नायक बनो।
गुरुवर रवीन्द्रनाथ जी की यह कविता सदैव ही प्रासंगिक रहेगी- “तेरा आह्वान सुन कोई ना आए तो तू चल अकेला, चल अकेला चल अकेला चल तू अकेला! तेरा आह्वान सुन कोई ना आए तो चल तू अकेला, जब सबके मुंह पे पाश.., ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश, हर कोई मुंह मोड़के बैठे हर कोई डर जाय! तब भी तू दिल खोलके अरे! जोश में आकर, मनका गाना गूंज तू अकेला! जब हर कोई वापस जाय.., ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय.., कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय…”